वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

  

हज़रत ख़्वाजा अब्बू इसहाक़ शामी

 

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

आप का इस्म गिरामी हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि और लक़ब शरफ़ उद्दीन था । ज़ाहिरी और बातिनी उलूम में मुमताज़ थे।ज़ुहद-ओ-रियाज़त में बेमिसाल , ख़लक़ से बेनयाज़ और ख़ालिक़ से ही हमराज़ थे। हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि दरवेशों से मुहब्बत करते थे और औलिया अल्लाह में मुमताज़ मुक़ाम रखते थे।

हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने ख़िरक़ा ख़िलाफ़त हज़रत ख़्वाजा ममशाद अलवी दीनोरी रहमतुह अल्लाह अलैहि से पाया था। अलमाराज अलफ़क़रा-ए-जोह के मिस्दाक़ हमेशा रोज़ा से रहते और सात दिन बाद इफ़तार किया करते। मुरीद होने से पहले चालीस दिन तक इस्तिख़ारा करते रहे। हातिफ़ ग़ैबी ने उलुव्व दीनोरी रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िरी का इशारा दिया तो उन के ख़िदमत में हाज़िर हुए। सात साल बाद तकमील को पहुंचे और ख़िलाफ़त अता हुई .

हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि के पैरौ मुर्शिद हज़रत ख़्वाजा ममशाद अलवी दीनोरी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने आप को ये बशारत दी कि अहल चिशत के इमाम बनूगे। चुनांचे आप रहमतुह अल्लाह अलैहि अपने वतन चिशत वापिस आए तो क़ुतुब चिश्तिया के लक़ब से मशहूर हुए। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि को समाव से बेहद लगाओ था। आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की मजलिस में आने वाले हर शख़्स पर वज्द तारी रहा करता।

एक बार क़हत पड़ गया । हज़ारों लोग हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत में हाज़िर हुए और बारान-ए-रहमत केलिए दुआ तलब की । हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने महफ़िल समाव बरपा की जब आप वज्द में आए तो आसमान पर बादल घर आए और इस क़दर बारिश हुई कि लोग इस के रोकने की दुआएं मांगने लगे।लोग दुबारा आप की ख़िदमत में हाज़िर हुए और बारिश रोकने की इस्तिदा की। हज़रत-ए-शैख़ अब्बू असहक़ शामी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़रमाया अगर दिल भर गया है तो बारिश रुक जाएगी। जिस के बाद बारिश रुक गई।

आप इसदार फ़ानी से ३२९ हिज्री को रुख़स्त हुए ।आप का मज़ार मुबारक शहर अक्का शाम में है।सैर अलाक़ताब के मुसन्निफ़ ने लिखा हैकि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के विसाल से लेकर आज तक आपऒ के मज़ार पर एक चिराग़ रोशन है जो कभी नहीं बुझा ये चिराग़ शाम से सुबह तक रोशन रहता है। बाद-ओ-बाराँ का कई बार तूफ़ान आया मगर रात के वक़्त कभी इस चिराग़ को गुल नहीं कर सका।